ॐ श्री गुरुवे नमः
परिवार और साधना
नमस्ते,
जब भी पारिवारिक व्यक्ति साधना शुरू करता है, तो उसका व्यक्तित्व बदलने लगता है। जैसे-जैसे मार्ग पर साधना शुरू होती है, उसकी पारिवारिक भागीदारी कम हो जाती है। उसका ध्यान पुरी तरह से बहार से अंदर की और हो जाता है, तो वह स्वार्थी दिखाई देने लगता है।
इसी
के साथ परिवार में एक असंतुलन शुरू हो जाता है। यह असंतुलन की वजह से परिवार से
साधना में कुछ बाधा या विघ्न आता है। यह परिस्थिति को कैसे संभाला जाए।
यह
परिस्थिति का जो मूल है, वह है असंतुलन तो आज उसको कैसे संतुलित रखा जा सकता है वह
जानेंगे।
ज्ञानमार्ग
पर साधना के तीन चरण है, श्रवण, मनन और निदिध्यासन।
श्रवण के चरण में श्रवण और लेखन के कारण साधक
भौतिक रूप से साधना करता दिखाई देता है और यह समय जो पहले परिवार के लिए हुआ करता
था, वह अभी साधना के लिए है, तो
इस चरण के दौरान परिवार के सदस्यों को सब से ज्यादा परिवर्तन होता दिखाई देता है।
सब से ज्यादा प्रतिरोध भी इसी चरण के दौरान मिलता है। यह चरण में जितना हो सके
धीरे चलें।
मनन साधना का वह चरण है, जो साधक अपने खाली
समय में बेठे बेठे कर सकता है और किसी को परिवार में पता नहीं चलता की कोई साधना
चल रही है, क्योंकि वह पुरी तरह मानसिक प्रक्रिया है।
निदिध्यासन के चरण में जो भी ज्ञान हुआँ है उसको
जीवन में उतारना है।
असंतुलन
का प्रमाण हर परिवार में अलग-अलग हो सकता है, जैसे यदि घर में
दोनों सदस्य काम पर जाते है, तो वहाँ पहले से ही असंतुलन की स्थिति है और उसको सही
तरीके से नहीं संभाला तो वह स्थति और भी बिगड़ सकती है।
असंतुलन
तभी होता है जब परिवार के जो भी कार्य है, उसमे से एक व्यक्ति की भागीदारी कम हो
जाती है। इस का प्रमुख कारण है समय की कमी, साधक का समय जो पहले परिवार के लिए
होता था, वह अभी साधना में जा रहा है।
तो
जो भी प्रतिरोध परिवार से दिखाई देगा वह श्रवण और लेखन के दौरान होता है, मनन की
प्रक्रिया मानसिक होने की वजह से उसके दौरान प्रतिरोध नहीं दिखा देगा, क्योंकि वह
नहीं जान पाते की आप आध्यात्मिक विषय पर मनन कर रहे है, जब निदिध्यासन का चरण आता
है तो यह संभावना है कि आप का आध्यात्मिक विकास इतना हो चुका है कि अब आप उनको
सहयोग देने लगते है और निस्वार्थ भाव से भागीदारी निभाते है।
सभी व्यक्ति को कुछ कार्यों जिन में उन को समझ नहीं आता, या वह उसको अच्छे से संभाल नहीं सकते, वह काम वह चाहते है कि कोई और कर दे। जो भी कार्य उनकी रुचि के विपरीत होंगे वह, आप को करने के लिए बोले जाएंगे।
साधक
को ऐसे जो भी कार्य है जो किसी पारिवारिक सदस्य की रुचि या कौशल नहीं है, वह कर
लेने चाहिए। इस से आप को अपनी साधना के कार्य करने के लिए स्वतंत्रता मिलती दिखाई
देंगी।
साधक
को अपने जो भी अनावश्यक कार्य है वह छोड़ देना है या न्यूनतम कर देना है। जैसे
समाचार पत्र पढ़ना, टीवी देखना,दोस्तों से मिलना,घूमने जाना,नींद.....
श्रवण
का कार्य आप अपने घर से कार्यस्थल जाने की यात्रा के समय भी कर सकते है।
यदि
कुछ कार्य जो आवश्यक है और दूसरों की मदद से प्रबंधित हो सकते है तो उसको ऐसे
प्रबंधित कर लेना है।
इस
के साथ ही जब भी सही समय या स्थिति होती है, तब हफ्ते के कुछ दिन साधना के लिए और
कुछ दिन परिवार के लिए ऐसे समझोंता कर लेना चाहिए। इस से परिवार के व्यक्ति मानसिक
तौर पर तैयार हो जाता है। यह भी तब जब हमे कोई भौतिक साधना जैसे वीडियो देखना या
लेख लिखना है तब तक ही जब मनन के चरण पर पहुँचते है तो आप सभी दिन साधना कर सकते है।
आप
जो भी साधना कर रहें है वह यह कार्यक्रम जब तक चल रहा है तभी तक ही है, उसके बाद
तो वापस संसार में ऐसा भी आप बता सकते है।
यह
भी कर सकते है कि जब परिवार के सदस्य सो जाए उसके बाद आप साधना शुरू करे। इस के
लिए आप को रात का खाना कम से कम आवश्यकता जितना कर लेना है, इस से आप की नींद कम
हो जाएंगी और आप उस समय का साधना के लिए उपयोग कर सकते है।
एक
और उपाय है कि जो परिवार की व्यक्ति को पसंद है उन्हे वहाँ भेज दे जैसे छुट्टियों
में पत्नी और बच्चों को मायके भेज सकते है, तो तब आप को अच्छे से निर्बाध साधना
करने का समय मिल जाता है।
जब
भी परिवार के सदस्य उनके पसंदीदा कार्य में जुड़े हुए है,आप को आप की साधना करने का
सब से अच्छा अवसर तभी प्राप्त होगा।
बहोत सुंदर है विशाल जी🌺🌺🙏🙏
जवाब देंहटाएंआपके अनुभव, समझ बहुत अच्छे लगे
बहुत अच्छा मनन है, इस विषय पर
आपके सार्थक प्रयास को धन्यवाद🌺🌺🙏🙏
अच्छा लगा कि आप को पसंद आया।🙏🌷
हटाएंसही है भाई ....जहाँ चाह, वहाँ राह 🌻🙏
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🌺
हटाएंप्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंकिन्तु आपने अपने लेख में किसी भी ऐसे भावनात्मक बातों क़ो शामिल नहीं किया जो कि संबंधों कि डोर क़ो बांधे रखते हैं। और भी कई महत्वपूर्ण पहळू जैसे कि साधना के पथ पर चलते हुए आपके रुझान एवं रूचि बदल जाया करती है जो कि सकज़िक जीवन एवं परिवारिक संबंधों में उथल पुथल मचा देते हैं। आषा थी कि आपने इन सभी पक्षो क़ो उजागर किया होगा किन्तु लेख बहुत ही ऊपर ऊपर से निकल गया.. विषय के अतर्गत नहीं गया.. आशा हैं
कि आप अगली बार सार्थक लिखेंगे .. आगे के लिए शुभकामनायें
आपको प्रणाम 🙏
प्रणाम 🙏
हटाएंआप का धन्यवाद सुझाव के लिये और क्षमा चाहता हूं कि आप के लिये लेख सार्थक नही रहा। आगे इस का ध्यान रखूंगा।
स्वानुभव से भावना ही वह कैंची है जो संबंधों की डोर को काटती भी है। संबंध को चलाने के जो दो पहिये है वह स्वीकार और स्वतंत्रता, यह तभी कर सकते है जब आध्यात्मिक मार्ग पर चलते है।
जो भी उथल पुथल है वह संतुलन के साथ आध्यात्मिक मार्ग पर चलने से कम हो जाती है।
संबंध में यदि दोनों एक मानसिक स्तर पर है तब तक उथल पुथल रहती है जैसे ही एक का मानसिक स्तर का विकास हो जाता है वह उथल पुथल कम या समाप्त हो जाती है।
👌👌👌🌹🌹🌹
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🌷
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