ॐ श्री गुरुवे नमः
कृपा के दर्शन
नमस्ते,
कृपा : चमत्कारी प्रतीत होती घटना, अनपेक्षित
कुछ अच्छी घटना होना, कारणहीन घटना
अहंभाव : मैं,मेरा और कर्तापन की वृत्ति
मनुष्य
के जीवन में जब कोई ऐसी घटना होती है, जो उसकी समझ से बहार है,
तो ही वह समझता है कि उस पर कृपा हुई है।
तो
प्रश्न यह आता है की, कैसे मिले कृपा? क्या
करू तो मुझ पर कृपा हो जाए?
तो आज इस के बारे में कुछ जानने का प्रयास करते है।
आध्यात्मिक व्यक्ति के दृष्टिकोण से कृपा
आध्यात्मिक
मार्ग मिलना। गुरु का मिलना। स्वयं का ज्ञान होना। ज्ञान का प्रकाश फैलाना।
आम
व्यतीत होते मनुष्य जीवन में यदि, आध्यात्मिक लक्ष्य बन जाए तो इस से बड़ी कृपा
क्या होंगी।
आध्यात्मिक
व्यक्ति एक क़दम गुरु को ढूँढने चलता है, गुरु दस क़दम चल कर प्रकट होते है।
स्वयं
को ढूँढते-ढूँढते पूरा अस्तित्व मिल जाता है।
आध्यात्मिक
व्यक्ति स्वयं की तलाश में होता है, तो स्वाभाविक रूप से अहंभाव कम होता है।
साधारण व्यक्ति के दृष्टिकोण से कृपा
लौटरी
लग जाना। बड़ी कंपनी में नौकरी लग जाना। इच्छा से ज़्यादा कुछ मिल जाना।
साधारण व्यक्ति इन सभी घटनाओ को अहंभाव के साथ जोड़ देता है, और कहता है कि मैंने लौटरी की टिकट खरीदी तभी तो इनाम जीता, मैंने अच्छे से इंटरव्यू दिया। मेरी महेनत की वज़ह से सब कुछ मिला है।
जब तक व्यक्ति में अहंभाव रहता है, वह जो भी जीवन में अच्छी घटना होती है, उस के लिए स्वयं को ही ज़िम्मेदार मानता है।
यही
कारणवश साधारण व्यक्ति कृपा को नहीं देख पाता, जब की कभी-कभी उस से ज़्यादा
प्रतिभाषाली व्यक्ति के पास यह सब नहीं होता जो उसके पास है।
यदि
हम कृपा को समझने के लिए आध्यात्मिक दृष्टि का उपयोग करे, तो सब से पहले जो हम देख
पाते है, वह है कि मनुष्य जीवन मिलना ही कृपा है, क्योंकि सिर्फ़ यही जीवन में
संभावना है कि स्वयं को जान पाये।
दोनों
दृष्टिकोण से कृपा तो पहले से है, सिर्फ़ अंतर यह है कि साधारण व्यक्ति जो
आध्यात्मिक मार्ग पर नहीं है वह उसके दर्शन नहीं कर पाता।
यदि हम ध्यान से देखे, तो हम देख पाते है
कि जब तक अहंभाव है, तब तक कृपा के दर्शन संभव नहीं है।
जब तक व्यक्ति में अहंभाव रहता है, वह जो भी जीवन में अच्छी घटना होती है, उस के लिए स्वयं को ही ज़िम्मेदार मानता है।
जब व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर गुरु के सान्निध्य में प्रगति करता है, और जब अहंभाव न के बराबर ही रहता है, तो वह देख पाता है कि जो भी अस्तित्व में हो रहा है वह कृपा है। जब कोई कर्ता नहीं है और फिर भी सब होता प्रतीत हो रहा है, तो यह तो चमत्कार ही है।
कृपा कुछ करने से नहीं मिलती है, न होती है, वह पहले से है, सिर्फ़ इतना देखना है।
अहंभाव के साथ कृपा नहीं, अहंभाव नहीं तो बस कृपा ही कृपा है।
धन्यवाद🌺🌺🙏🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख है, प्रभू जी🙏🙏
आप का बहुत बहुत धन्यवाद लेख पढ़ने के लिए।🙏
हटाएं🌹🌹🌹👌👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिवम जी,🙏🌷
हटाएंसुंदर🙏🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंलेख पढ़ने के लिए आभार।🙏
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