मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

अध्यात्म और कारण

ॐ श्री गुरुवे नमः

अध्यात्म और कारण

नमस्ते,

अध्यात्म : स्वयं के तत्व का अध्ययन

कारण : किसी घटना के लिए कोई और घटना को जिम्मेदार ठहराना

अस्तित्व : संपूर्णता, सब कुछ

जब व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर चलना शुरू करता है, तो कभी ना कभी यह प्रश्न अवश्य व्यक्ति के मन में आता है, की वह कौन-सा कारण था कि मैं आध्यात्मिक मार्ग पर आया।  

किसी भी व्यक्ति का अध्यात्म की और झुकाव चाहे जिज्ञासा हो, या दुख हो, जब तक वह व्यक्ति साधक नहीं होता, वह इस के लिए क्या कारण है, उस में उलझा रहता है। जिज्ञासा का कारण क्या था, दुख का कारण क्या था।

अध्यात्म में कारण का क्या महत्त्व है, आज उसके बारे में जानेंगे। 

किसी भी घटना के लिए कारण खोजना मन की मूल वृत्ति है। जब तक मन किसी घटना जिस को महत्त्वपूर्ण है, उसका कारण नहीं बना लेता वह शांत नहीं होता।

कारण का व्यवहारिक जीवन में महत्त्व है, उससे मनुष्य जीवन सरल होता है और उत्तरजीविता के लिए बहुत उपयोगी है ।

यदि आध्यात्मिक रुचि को हम प्रभाव की तरह देखे और उसके कारणों पर विचार करे, तो इसको समझा जा सकता है ।

उदाहरणार्थ

कुछ व्यक्ति को अध्यात्म की और रुचि और जिज्ञासा क्यों होती है ?

 

 

 

आध्यात्मिक लोगों से संपर्क 

बहुत सारे लोग अपने मनुष्य जीवन काल में आध्यात्मिक लोगों के संपर्क में आते है, लेकिन उन में से बहुत ही कम लोग आध्यात्मिक मार्ग पर चल पाते है।  

आध्यात्मिक परिवार में जन्म

आध्यात्मिक परिवार में जन्म लेने से यह संभावना बढ़ जाती है कि व्यक्ति का झुकाव आध्यात्म की और रहेगा, लेकिन अपने अनुभवों से देख सकते है कि ऐसा नहीं है, आध्यात्मिक परिवार में ही जन्मे दो लोगों में से एक आध्यात्मिक और दूसरा पूरी तरह सांसारिक हो सकता है।

पूर्वजन्म के संस्कार

यदि हम कहें की इस जन्म में आध्यात्मिक रुचि पूर्व जन्म के संस्कार है, तो पूर्वजन्म में जो रुचि थी वह भी तो उसके पहले के जन्म के संस्कार रहे होंगे, तो पूर्व जन्म में ही वह आध्यात्मिक मार्ग पर क्यों नहीं चल पाया ।

 

किसी एक प्रभाव के बहुत से कारण हो सकते है और उन कारणों के भी कारण होंगे, तो वह एक अनंत कारणों की शृंखला हो जाती है जो अर्थहीन है।

इन उदाहरणों से यह सिद्ध होता है की कोई भी घटना का कोई कारण नहीं होता । यह चितनिर्मित और मनगढ़ंत है ।

अध्यात्म में कारण का कोई महत्त्व नहीं है ।

इसी कारण से जो भी साधक आध्यात्मिक मार्ग पर चलता है, उस के लिए कारण अर्थहीन और मनगढ़ंत है ।

अस्तित्व में निरंतर अनुभव है, ऐसा नहीं है कि एक अनुभव के बाद थोड़ी देर के लिए अनुभव रुक जाता है और बाद मे दूसरा अनुभव शुरू होता है। चित्त यह निरंतर चलते अनुभव की शृंखला में सीमाओ की मनगढ़ंत रचना करता है और घटनाओ का भ्रम उत्पन्न करता है। कोई भी घटना एक अनुभव है, तो एक अनुभव का दूसरे अनुभव का कारण होना तर्कहीन है।  

यह ऐसा है, जैसे महासागर में अलग-अलग महासागरों की सीमाए बना दी गई है। निरंतर चलते जीवन में मनुष्य जीवन की जन्म और मृत्यु के आधार पर सीमाए बना देना। जमीन पर अलग-अलग देश,राज्यों और शहर की सीमाए बना दी गई है। 

यदि अस्तित्व ही कारणहीन है, तो यह कहना निरर्थक है की कसी भी घटना का कोई कारण है।

इसी तरह अध्यात्म मार्ग पर चलने से साधक कारण-प्रभाव से ऊपर उठ जाता है। इस से ऊपर उठते ही साधक स्वीकार भाव में रहता है।  

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