ॐ श्री गुरुवे नमः
जगत की वास्तविकता
नमस्ते,
जगत : वस्तुओं
का संग्रह जिसका अनुभव पंच ज्ञानेन्द्रियों से होता है
वस्तुनिष्ठता : सब व्यक्तियों के अनुभव एकसमान है वह मान लेना, जैसे सब के पंचेन्द्रियों से होने वाले अनुभव में समानता होती है, एक सा दिखना, एक सा सुनाई देना, एक सी सुगंध आना, एक सा खाने का स्वाद और एक सा स्पर्श का अनुभव।
व्यक्तिनिष्ठ : जो व्यक्ति की इंद्रिया बताती है उस का अनुभव। जैसे किसी की आँखों मे खराबी है तो उस को वह नहीं दिखाई देगा जो उस व्यक्ति को दिखाई देता है जिसकी आखें खराब नहीं है।
किसी भी नये साधक या आम व्यक्ति का, सब से बड़ा भ्रम, यह होता है कि जो भी जगत मे दिखाई पड़ता है, वह वास्तविक है।
आज जगत की वास्तविकता के बारे मे कुछ जानेंगे।
जगत का अनुभव पंच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा होता है। देखना, सुनना, सूंघना, स्वाद, स्पर्श,वस्तुनिष्ठता को ही सत्य मान कर चलते चलते, जब उस साधक पर गुरुकृपा होती है तो वह, यह अज्ञान जो भी जगत मे दिखाई देता है, वह वस्तुनिष्ठ है, उस के ऊपर आता है और उस के व्यक्तिनिष्ठ होने का ज्ञान होता है ।यानि कि जो भी जगत मे दिखाई देता है, वह उसकी इंद्रियों पर निर्भरता है और जो इंद्रिया हमे दिखाती हैं, हमे वह दिखाई देता है।जब कोई साधक यह समझ पाता है, कि जगत मे दिखने वाली वस्तुए वास्तविकता में नहीं हैं तो वह साधक के जीवन मे आश्चर्य के साथ साथ भूकंप सा आ जाता है ।
यदि व्यक्ति अपने आसपास के अनुभवों पर ध्यान दे तो यह बात समझ में आती है।
उदाहरणार्थ
रास्ते ( राजमार्ग ) पर कभी कभी पड़ी हुई वस्तु दूर से कुछ अलग दिखाई देती है और जब हम वहाँ पहुँचते हैं तो वह कुछ और ही होती है।
संगीत इस का बड़ा उदाहरण है किसी व्यक्ति को मधुर सुरीली लगने वाली आवाज किसी के लिए शोर के समानहै।
सभी प्राणियों के जीवन के लिए खाना बहुत आवश्यक है और यदि यह एक वस्तुनिष्ठ अनुभव होता तो सभी का पसंदिता खाना एक सा होता लेकिन हमारा अपरोक्ष अनुभव है की ऐसा नहीं है ।
सर्दी के मौसम मे किसी को ज्यादा ठंड लगती है किसी को कम और किसी ज्यादा ठंडे प्रदेश से आए व्यक्ति को गर्मी लगती है।
यदि वस्तु जैसी है वैसी अनुभव होती, तो एक ही तरह का खाना सभी को पसंद आता, एक ही तरह की कार सबको पसंद आती, एक ही तरह की मूवी सब को पसंद आती, किन्तु हमारा अपरोक्ष अनुभव ऐसा नहीं है हम देख सकते है की जगत मे एक ही साथ बहुत सारे होटल, कार के शोरूम, थियेटर दिखाई देते है, और सब को पसंद करने वाले लोगों के समूह भी होते है।तो यह बात तो सिद्ध है की वस्तु का निर्माण इंद्रियों द्वारा जनित अनुभूति ही है, वस्तु का अनुभव नहीं होता ।
पूरा जीवन जिस को सत्य मान के चल रहे थे, वही असत्य सिद्ध होने पर सारी आसक्ति छूट जाती है और जो भी अभी तक जीवन मे व्याकुलता थी सब इस ज्ञान के नीचे दब जाती है और एक हलकापन जीवन मे महसूस होता है । जगत की वास्तविकता को जानना ही बाहर से अंदर की यात्रा का आरंभ है ।जगत इंद्रियों पर निर्भर है वही है जो इंद्रिया हमे बताती है।
वस्तुनिष्ठता के अज्ञान का नाश होते ही पहली बार साधक देख पाता है की जो अवस्था को कभी जीवन मे महत्वनहीं दिया है वह अवस्था ही सत्य के काफी करीब थी, और वह अवस्था है सुषुप्ति ( निद्रावस्था )।यह अज्ञान नाश के साथ ही माया का पहली बार दर्शन होता है।
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