ॐ श्री गुरुवे नमः
व्यवहारिक जीवन में आध्यात्मिक ज्ञान
नमस्ते,
व्यक्ति जब आध्यात्मिक ज्ञान में रुचि
लेना शुरू करता है, तो यह प्रश्न अवश्य
आता है कि आध्यात्मिक ज्ञान का व्यवहारिक जीवन में क्या लाभ है?
आध्यात्मिक ज्ञान में सब से महत्त्वपूर्ण
ज्ञान है आत्मज्ञान!
मनुष्य कई जन्मों से व्यवहारिक जीवन ही जीता आया है तो यह स्वाभाविक है कि जो भी उसे मिलता है वह उसमे अपना लाभ देखने का प्रयत्न करता है। ऐसा ही आध्यात्मिक ज्ञान के साथ है जब व्यक्ति का आध्यात्मिक ज्ञान से थोड़ा-सा परिचय होता है तो उस के मन में यह विचार अवश्य आता है कि इससे मेरा जीवन कैसे और अच्छा हो जाएगा मुझे इससे व्यवहारिक जीवन में क्या लाभ होगा।
साधारण मनुष्य कि संग्रहवृत्ति के
संस्कारों कि वजह से वह यह नहीं जान पाता के अध्यात्म पाना नहीं छोड़ना है,
जब मनुष्य सब छोड़ना शुरू करता है जो कि अध्यताम के किसी भी मार्ग पर
चलने से स्वत ही होगा तो ही वह स्वयं तक पहुँच पाता है।
व्यवहारिक जीवन में मनुष्य कई सारी
बिनजरूरी वस्तुओ के लिए समय बर्बाद करता रहता है। जब आध्यात्मिक ज्ञान होता है तो
जीवन एक तरह से नियंत्रित चलता प्रतीति होने लगता है। यह समज में आते ही कि जो हो
रहा है और चल रहा है उस को बदलना अर्थहीन है और वह पहले से ही पूर्ण है एक
शांति-सी आने लगती है जो कि पहले उसको बदलने में ऊर्जा और समय का व्यर्थ के साथ
अशांति बनी रहती थी।
मनुष्य जीवन कि आवश्यकता कि और ध्यान
जाता है और सब कुछ बहुत कम और न्यूनतम हो जाता है।
इच्छाओ कि अपूर्ति से होनेवाले दुख
स्वत ही चले जाते है। अभी तक जो भी मनुष्य जीवन अंधकार में चल रहा था वह अभी
प्रकाशित चलता है।
जैसे अंधेरे में पड़ी रस्सी साप कि तरह
प्रतीत होती है डर को जन्म देती है और प्रकाश होते ही वह डर चला जाता है ऐसी ही
मनुष्य जीवन प्रकाशित चलने से वस्तुओ को जैसा है वैसा देखने कि क्षमता आते ही जीवन
खेल बन जाता है और कोई भी अनावश्यक डर नहीं रहता।
दुख और सुख साथ में ही आते है यह जान
लेते ही सुख कि व्यर्थता दिखाई देती है। दूसरों को बदलने कि जो वृत्ती है वह कम हो
जाती है तो व्यवहारिक जीवन में प्रतिरोध कम होने लगता है और एक हलकापन महसूस होता
है।
व्यवहारिक जीवन में कुछ बदलता नहीं है
सिर्फ मनुष्य कमल कि तरह अज्ञान के कीचड़ से ऊपर उठ जाता है। कीचड़ को साफ नहीं कर
सकते इतना ही ज्ञान होगा।
व्यवहारिक जीवन वैसा ही चलेगा,
लेकिन आप उससे प्रभावित नहीं होंगे। सुख और शांति बढ़ती जाएंगी।
न व्यवहारिक जीवन बदलता है न व्यक्ति
बदलता है, न बहार कुछ बदलने को है न
अंदर। यही जान पड़ता है कि जो भी है पूर्ण है और मैं इन सभी का द्रष्टा हूँ।
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