ॐ श्री गुरुवे नमः
परिवार और साधना
नमस्ते,
जब भी पारिवारिक व्यक्ति साधना शुरू करता है, तो उसका व्यक्तित्व बदलने लगता है। जैसे-जैसे मार्ग पर साधना शुरू होती है, उसकी पारिवारिक भागीदारी कम हो जाती है। उसका ध्यान पुरी तरह से बहार से अंदर की और हो जाता है, तो वह स्वार्थी दिखाई देने लगता है।
इसी
के साथ परिवार में एक असंतुलन शुरू हो जाता है। यह असंतुलन की वजह से परिवार से
साधना में कुछ बाधा या विघ्न आता है। यह परिस्थिति को कैसे संभाला जाए।
यह
परिस्थिति का जो मूल है, वह है असंतुलन तो आज उसको कैसे संतुलित रखा जा सकता है वह
जानेंगे।